दिल उदास है बहुत कोई पैगाम ही लिख दो
तुम अपना नाम न लिखो, "गुमनाम" ही लिख दो .....
[ पैगाम = Mail ]
मेरी किस्मत में ग़म-इ-तन्हाई है लेकिन
तमाम उम्र न लिखो मगर एक शाम ही लिख दो .....
ज़रूरी नहीं है की मिल जाये सुकून हर किसी को
सरे-इ-बज़्म न आओ मगर बेनाम ही लिख दो ......
ये जानता हूँ की उम्र भर तनहा मुझको रहना है
मगर पल दो पल, घडी-दो-घडी मेरे नाम ही लिख दो .......
चलो हम मान लेते हैं के सजा के मुस्ताहिक़ ठहरे हम
कोई इनाम न लिखो, कोई इलज़ाम ही लिख दो ......
4 comments:
Bahut khub. Very well composed. Par kuch kuch words nai samajh aaye. Ye 'sare-e-bazm' ka matlab samjhayenge aap ?
Bhaaai!!!! The last line was exceptional!!! Awesome nazm!! Read it thrice!
@shruti: Thanks.
Ohh, I forgot to mention about the word 'sare-e-bazm'. Actually it means 'visible to all'.
@mangoman: Thanks bhai. Glad to know that u had given a lot of time to read it thrice.
BTW the last line is my favourite too.
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Drop in a few words. It brings smile on my face.